Tuesday, April 06, 2010

Poetry on Hallaur By Great poet - Samar Hallauri

दामने कोहे हिमालय में हैं हल्लौर आबाद
रहती इस जा है रसूले अरबी की औलाद
खवाजा ताशे अलवी पाक दिलो नेक नेहाद
मरहबा जज्बये कौम अहले वतन जिंदाबाद
हब्बज़ा मिल्लते जाफर तेरी शैदाई है
कौम इस मरकज़े वाहिद पे सिमट आई हैं
ये जमी क़स्बाए हल्लौर की पुरनर ज़मी
हुस्ने फितरत के तकाजो से है भरपूर ज़मी
जलवये हक़ से बहर तौर हैं मामूर ज़मी
अहले बिनश के लिए अयिनाये तूर ज़मी
दामने आले एबा साया फेगन है इस पर
नाज़ फरमाए जहाँ मेरा वतन हैं इस पर
इल्मो इरफ़ानो शरीअत का चमन हैं मशहद
कहते है मुश्के मुआदत का खतन है मशहद
गोहरे ताजे इमामत का अदन है मशहद
कितने अरबाबे सेआदत का वतन है मशहद
हद्फे जुल्म हमारे भी जो अजदाद हुए
तूस को छोड़ के हल्लौर में आबाद हुए
शाहेदी शाहे खुरासान रज़ा का मरकद
छुट गया हमसे गरीबुल गोराबा का मरकद
मुम्बए जूद मोईनुजोअफा का मरकद
फखरे कोनैन - अनिसुलफोकरा का मरकद
अहले दी जिसकी जियारत के लिए जाते हैं
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Full poetry will be found in book - hira patthar